ईशा अंबानी ने आईवीएफ के माध्यम से जुड़वा बच्चों को जन्म देने का खुलासा किया
मुकेश अंबानी की बेटी और प्रसिद्ध व्यवसायी ईशा अंबानी ने हाल ही में खुलासा किया कि उन्होंने इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक का सहारा लेकर जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। ईशा, जो आनंद पिरामल से शादी कर चुकी हैं, ने 2022 में एक लड़के और एक लड़की को जन्म दिया।
ईशा ने एक हालिया साक्षात्कार में अपनी मातृत्व यात्रा के बारे में बात की, जिसमें उन्होंने बताया कि उन्हें और उनके पति आनंद को गर्भधारण करने के लिए आईवीएफ उपचार से गुजरना पड़ा। उन्होंने इस प्रक्रिया के दौरान आने वाली चुनौतियों और संघर्षों का भी जिक्र किया। ईशा की यह खुलासा एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है क्योंकि यह बांझपन और आईवीएफ से जुड़े सामाजिक कलंक को तोड़ने में मदद कर सकता है।
बांझपन और आईवीएफ: एक नया नजरिया
ईशा अंबानी का यह खुलासा भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण संदेश देने के लिए भी जाना जा रहा है। बांझपन और आईवीएफ अभी भी कई भारतीय परिवारों में एक संवेदनशील और विवादास्पद विषय माना जाता है। ईशा का खुलकर अपनी कहानी साझा करना उन हजारों जोड़ों के लिए प्रेरणास्त्रोत हो सकता है जो बांझपन की समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
ईशा के इस निर्णय को अंबानी परिवार का पूरा समर्थन मिला है। उनके परिवार और करीबी दोस्तों ने उनके इस महत्वपूर्ण कदम की सराहना की है। यह समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश हो सकता है कि आईवीएफ और अन्य प्रजनन उपचार सामान्य और स्वीकृत प्रक्रियाएं हैं और इसमें कोई भी शर्म की बात नहीं है।
आईवीएफ प्रक्रिया के महत्व और चुनौतियां
आईवीएफ एक जटिल और समय-साध्य प्रक्रिया है जिसमें महिलाओं के अंडाणुओं को पुरुषों के शुक्राणुओं के साथ प्रयोगशाला में निषेचित किया जाता है। यह प्रक्रिया उन महिलाओं के लिए एक आशीर्वाद है जो किसी कारणवश प्राकृतिक रूप से गर्भधारण नहीं कर पाती हैं।
ईशा ने इस प्रक्रिया की चुनौतियों के बारे में भी विस्तार से बात की। उन्होंने बताया कि कैसे हर कदम पर मानसिक और शारीरिक संघर्षों का सामना करना पड़ा। उनके अनुसार, इस प्रक्रिया का सबसे कठिन हिस्सा था भावनात्मक तनाव, जो अक्सर अज्ञात होता है। ईशा ने कहा, “यह यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन परिणामस्वरूप हमें हमारे प्यारे बच्चे मिले, जिनसे हमें बहुत सुख और संतोष मिला।”
आईवीएफ और समाज
ईशा अंबानी के इस साहसिक कदम से भारतीय समाज में एक नई सोच का उदय हो सकता है। अक्सर देखा गया है कि भारतीय समाज में बांझपन और आईवीएफ के मुद्दों पर खुलकर चर्चा नहीं होती। खासकर महिलाओं को इस विषय पर बोलने में हिचकिचाहट होती है। ईशा की इस खुलासे से महिलाओं को प्रेरणा मिल सकती है कि वे अपने अनुभवों को साझा करें और इस प्रक्रिया को सामान्य बनाने में योगदान दें।
कमर्शियल और आधुनिक समाज के बढ़ते प्रभाव के बीच भी पारंपरिक धारणाओं को तोड़ना एक चुनौती से कम नहीं है। ईशा अंबानी का यह कदम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पदचिन्ह हो सकता है।
आईवीएफ से जुड़ी भ्रांतियां और उनका समाधान
आईवीएफ से संबंधित कई भ्रांतियां हैं जो समाज के विभिन्न तबकों में व्याप्त हैं। कई लोग इसे अस्वाभाविक मानते हैं और इसे लेकर कई तरह की गलतफहमियां होती हैं। यही कारण है कि इस पर खुलकर बात करना बहुत महत्वपूर्ण है।
- एक प्रमुख भ्रांति यह है कि आईवीएफ के माध्यम से जन्मे बच्चे अस्वस्थ हो सकते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि आईवीएफ के माध्यम से जन्मे बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह ही स्वस्थ होते हैं।
- दूसरी भ्रांति यह है कि आईवीएफ केवल अमीर लोगों के लिए ही संभव है। हालांकि, हाल के वर्षों में आईवीएफ की प्रक्रिया कोAffordable बनाया गया है।
- कई लोग यह भी मानते हैं कि आईवीएफ का उपयोग करना नैतिकता के खिलाफ है। इसे समय के साथ बदलने की जरूरत है और लोगों को इन प्रक्रियाओं के बारे में जागरूक करना आवश्यक है।
ईशा अंबानी ने अपनी कहानी साझा करके न केवल इन भ्रांतियों को तोड़ने का प्रयास किया है बल्कि समाज को एक नई दिशा देने का भी प्रयास किया है।
ईशा अंबानी की प्रेरणादायक कहानी
ईशा अंबानी की यह कहानी ना सिर्फ उन महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है जो बांझपन की समस्याओं का सामना कर रही हैं, बल्कि उनके परिवारों के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश है। समाज को अब यह स्वीकार करना होगा कि बांझपन और आईवीएफ जैसी प्रक्रियाएं सामान्य हैं और इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
अंत में, ईशा अंबानी का यह खुलासा ना सिर्फ उनकी व्यक्तिगत यात्रा का हिस्सा है बल्कि यह समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश है। इससे यह सिद्ध होता है कि समाज में आईवीएफ और बांझपन को लेकर जो धारणाएं हैं, उन्हें बदलने की जरूरत है।
20 टिप्पणि
Arundhati Barman Roy
जून 29, 2024 AT 18:06ईशा की कहनि सुॆकर मेरा दिल बहुत स्पर्शित हो गया, यह एक अद्भुुत अनुभव है। वह अपने संघर्षो को खुलकर बताती है जिससे बहुत सहानुभुति वाटी।
yogesh jassal
जून 30, 2024 AT 00:26जिंदगी में कभी‑कभी ऐसे मोड़ आते हैं जहां हम सोचते हैं कि रास्ता नहीं है, पर ईशा ने तो दिखा दिया कि विज्ञान और इछ्छा मिल कर क्या कर सकते हैं। वह अपने दो बच्चों को देख कर शायद ही कभी झिझकेगी कि किस्मत को कैसे मोड़ा जाता है। हम सबको चाहिए ऐसा धैर्य और आशावाद, नहीं तो सब कुछ बेकार रहेगा। थोड़ी सी हँसी‑मजाक भी इस यात्रा में रंग भर देती है। क्या पता, अगले साल हमें भी ऐसी ही कोई कहानी सुनने को मिले। इस तरह की खुली बातें समाज में मौजूद कलंक को तोड़ने का काम करती हैं। कई दंपति अभी भी डर और भ्रम में फँसे रहते हैं। उन्हें यह जानकर राहत मिलती कि इस तकनीक ने अनगिनत परिवारों की मदद की है। साथ ही यह भी समझना ज़रूरी है कि प्रत्येक मामला अलग होता है। डॉक्टर और विशेषज्ञों की सही सलाह बहुत महत्वपूर्ण होती है। अपने अनुभव को साझा करके ईशा ने कई महिलाओं को हिम्मत दिलाई है। यह साहसिक कदम हमें यह भी सिखाता है कि गुप्त रहस्य नहीं छोड़ने चाहिए। समाज में जब हम ऐसी कहानियों को सराहते हैं, तो परिवर्तन की प्रक्रिया तेज़ होती है। अंत में, हमें एक-दूसरे का समर्थन करना चाहिए और इस दिशा में सकारात्मक सोच बनाए रखनी चाहिए।
Raj Chumi
जून 30, 2024 AT 07:23भाई, ईशा ने IVF के साथ दो बन्हे की बिचारी बछड़े निकाले यार बड़े जबरदस्त सीन है
mohit singhal
जून 30, 2024 AT 14:20देश के महान परिवारों में इस तरह की सफलता देखना गर्व की बात है 🇮🇳! ईशा ने दिखाया कि क्या बात है जब हम अपनी शक्ति को सही दिशा में लगाते हैं, IVF जैसे आधुनिक उपायों से कोई शर्म नहीं 🚀। यह कदम न केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का भी संकेत है।
pradeep sathe
जून 30, 2024 AT 21:16ईशा का साहस दिल को छू जाता है, वह अपने अनुभव को इतनी खुलकर साझा करती हैं कि हम सभी को प्रेरणा मिलती है। इस तरह की कहनियों से समाज में टैबू तोड़ना संभव है, और हमें भी लोगों को सपोर्ट करना चाहिए।
ARIJIT MANDAL
जुलाई 1, 2024 AT 04:13IVF का सफलता दर औसत 30% है, इसे सही ढंग से समझा जाना चाहिए।
Bikkey Munda
जुलाई 1, 2024 AT 11:10IVF प्रक्रिया में अंडा संग्रह, स्पर्म चयन, और एम्ब्रियो ट्रांसफर शामिल होते हैं। अगर सही क्लिनिक चुना जाए तो जोखिम कम होते हैं।
BALAJI G
जुलाई 1, 2024 AT 18:06समाज में इतने लोग अभी भी इस तरह के इलाज को निंदनीय मानते हैं, यह नैतिक गिरावट का संकेत है। हमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि जीवन के सभी विकल्पों का सम्मान होना चाहिए, लेकिन कुछ सीमाएं भी हैं।
Manoj Sekhani
जुलाई 2, 2024 AT 01:03बजट क्लिनिकों की बात कर रहे हो? असली क्वालिटी वाले केंद्रों में ही कोशिश करनी चाहिए, नहीं तो परिणाम ही खराब होते हैं।
Tuto Win10
जुलाई 2, 2024 AT 08:00वाह! क्या कहानी है!!! ईशा ने दो छोटे जीवन को इस तरह लाया, जैसे किसी फिल्म की परीकथा!!! यह समाज को हिला कर रख देगा!!!
Kiran Singh
जुलाई 2, 2024 AT 14:56परंतु सभी के लिए IVF सुलभ नहीं है, आर्थिक बाधा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह एक असमानता का मुद्दा भी है।
anil antony
जुलाई 2, 2024 AT 21:53सत्रिप्लिकेनिया की संभावनाओं को देखते हुए, वर्तमान प्रोटोकॉल में कुछ गैप्स हैं। व्यापक जनसंख्या स्तर पर स्केलेबिलिटी अभी अनिश्चित है।
Aditi Jain
जुलाई 3, 2024 AT 04:50देश के बुनियादी ढांचे को इस दिशा में आगे बढ़ाना भारत की प्रगति को दर्शाएगा, अन्यथा हम पीछे रह जाएंगे।
arun great
जुलाई 3, 2024 AT 11:46ईशा की कहानी एक सकारात्मक संकेत है कि विज्ञान और परिवार दोनों को साथ लाया जा सकता है 😊। खुलकर बात करने से कई जड़तों को तोड़ा जा सकता है।
Anirban Chakraborty
जुलाई 3, 2024 AT 18:43परन्तु हर कोई इतना साहसी नहीं होता, हमें ऐसे लोगों की भी कदर करनी चाहिए जो निजी रूप से संघर्ष करते हैं।
Krishna Saikia
जुलाई 4, 2024 AT 01:40देश की प्रगति में ऐसे कदम बहुत जरूरी हैं, ईशा ने दिखा दिया कि हम दुनिया के साथ कदम मिला सकते हैं।
Meenal Khanchandani
जुलाई 4, 2024 AT 08:36यह अच्छा संकेत है, और कई महिलाओं को आशा मिली है।
Anurag Kumar
जुलाई 4, 2024 AT 15:33अगर आप IVF पर विचार कर रहे हैं, तो क्लिनिक की सफलता दर, डॉक्टर का अनुभव और लागत को ध्यान में रखें। बेहतर निर्णय के लिए कई स्रोतों से जानकारी इकट्ठा करना फायदेमंद रहेगा।
Prashant Jain
जुलाई 4, 2024 AT 22:30बहुत लोग सिर्फ़ लागत देख कर आगे बढ़ते हैं, यह जोखिम भरा है।
DN Kiri (Gajen) Phangcho
जुलाई 5, 2024 AT 05:26सभी को यह याद रखना चाहिए कि मदद मांगना कमजोरी नहीं, बल्कि समझदारी है। अगर आप या आपका कोई जानने वाला IVF की सोच रहा है, तो खुलकर बात करें और सही मार्गदर्शन लें।