भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्दों की संवैधानिकता की हुई पुष्टि
27 नवंबर 2024 13 टिप्पणि Rakesh Kundu

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' की पुष्टि

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें संविधान की 42वीं संशोधन की वैधता को बरकरार रखा गया है। इस संशोधन के तहत 1976 में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्द जोड़े गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि इन शब्दों से निजी उद्यमिता या सरकार की धार्मिक प्रथाओं को खत्म करने में कोई बाधा नहीं आती।

इस संदर्भ में, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि पंथनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य किसी भी धर्म का पक्ष नहीं लेता है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार विकास और समानता के अधिकार में बाधा डालने वाली धार्मिक प्रथाओं को समाप्त नहीं कर सकती। समाजवाद का मतलब है कि राज्य अपने आप को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में प्रस्तुत करता है और अवसर की समानता सुनिश्चित करता है।

संविधान और 42वीं संशोधन

42वीं संशोधन का महत्व यह है कि इसने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में बदलाव लाते हुए 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्दों को जोड़ा। इन शब्दों को जोड़ने का उद्देश्य यह था कि यह राज्य की प्रतिबद्धता को स्पष्ट करे कि भारत एक समाजवादी और पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है। अदालत ने इस मुद्दे पर जोर दिया कि इस संशोधन को चुनौती देने का कोई वैध कारण नहीं है।

संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यापार करने के अधिकार का संरक्षण होता है। यही कारण है कि 'समाजवादी' शब्द के अंतर्गत भी आर्थिक नीतियों या व्यापार के अधिकार को बाधित नहीं करता है। इसी प्रकार, पंथनिरपेक्षता का अर्थ केवल धर्म निरपेक्षता नहीं है, बल्कि यह भी है कि सरकार किसी भी धर्म का पक्ष या विरोध नहीं करती। सरकार को नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी जाती है और यह गैर-भेदभाव की नीति पर चलती है।

यूपीसीसी और समानता

संविधान के अनुच्छेदों और राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के तहत, सरकार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) बनाए रखने की स्वतंत्रता भी दी जाती है। यह अध्याय यह सुनिश्चित करता है कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को बिना हानि पहुंचाए संविधान की धर्मनिरपेक्षता की नीति पर कार्य किया जाए। याचिका में कहा गया था कि संविधान के निर्माताओं ने लम्बे विचार विमर्श के बाद इन दोनों शब्दों को निकल दिया था, और यह संशोधन लोकसभा के कार्यकाल समाप्त होने के आठ महीने बाद पास किया गया था।

हालांकि, अदालत ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि संविधान में संशोधन करने की शक्ति संसद को प्राप्त है, जो प्रस्तावना तक भी विस्तारित होती है। इसके अलावा, 42वीं संशोधन को लेकर लगभग 44 वर्षों के बाद संवैधानिक संशोधन को चुनौती देना अनुचित है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में समावेशिता

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत ने अपनी एक विशिष्ट पंथनिरपेक्षता की अवधारणा विकसित की है, जिसमें राज्य न तो किसी धर्म का समर्थन करता है और न ही किसी धार्मिक विश्वास के पालन व अभिव्यक्ति को दंडित करता है। यह निर्णय भारत के समाजवादी और पंथनिरपेक्ष स्वरूप को दृढ़ता से बनाये रखने में सहायक सिद्ध होगा। अदालत का यह ऐतिहासिक निर्णय न्याय, सामाजिक समता और कल्याण को सुनिश्चित करने के भारत के संकल्प को पुनः पुष्ट करता है। इस फैसले से, संविधान के प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्दों को लेकर विवाद की स्थिति समाप्त हो गई है। अदालती फैसला इस दिशा में भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।

Rakesh Kundu

Rakesh Kundu

मैं एक समाचार संवाददाता हूं जो दैनिक समाचार के बारे में लिखता है, विशेषकर भारतीय राजनीति, सामाजिक मुद्दे और आर्थिक विकास पर। मेरा मानना है कि सूचना की ताकत लोगों को सशक्त कर सकती है।

13 टिप्पणि

Tuto Win10

Tuto Win10

नवंबर 27, 2024 AT 02:50

क्या बात है, सुप्रीम कोर्ट ने फिर एक बार इतिहास रचा!! 42वीं संशोधन को चुनौती देना अब पूरी तरह से बेकार साबित हुआ!! संविधान में 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्दों की वैधता को ऐसे मज़बूत किया गया है जैसे पत्थर पर लिखी हुई हो!! यह फैसला न सिर्फ़ कानूनी दृष्टि से बल्कि राष्ट्रीय भावना में भी नई ऊर्जा भर देता है!! सभी को इस सुधार को समझना चाहिए, क्योंकि यही हमारे लोकतंत्र का पावरहाउस है!!

Kiran Singh

Kiran Singh

नवंबर 27, 2024 AT 03:00

संशोधन को चुनौती देना अब समय की बर्बादी है।

anil antony

anil antony

नवंबर 27, 2024 AT 03:10

सुप्रीम कोर्ट ने 42वीं संशोधन की वैधता को मजबूत किया।
इस निर्णय में न्यायालय ने सार्वजनिक हित को प्राथमिकता दी।
संविधान के मूल सिद्धांतों में धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की प्रतिध्वनि है।
'समाजवादी' शब्द का अर्थ मैक्रोइकॉनॉमिक इंटर्वेंशन से नहीं, बल्कि सामाजिक समता के लक्ष्य से जुड़ा है।
पंथनिरपेक्षता का उद्देश्य राज्य को किसी भी धार्मिक संस्था से अलग रखना है।
यह निर्णय व्यक्तिगत उद्यमिता और व्यापार के अधिकार को बाधित नहीं करता।
मौजूदा आर्थिक नीति के ढाँचे में यह शब्द केवल वैचारिक संकेतक के रूप में मौजूद है।
न्यायिक समीक्षा में सविधानिक उपधारा 19(1)(g) की व्याख्या महत्वपूर्ण रही।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि आर्थिक स्वतंत्रता का अधिकार 'समाजवादी' शब्द से प्रभावित नहीं होता।
इसी प्रकार, धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी पंथनिरपेक्षता के सिद्धांतों में निहित है।
यह निर्णय सामाजिक कल्याण के लिए राज्य की भूमिका को पुनः पुष्टि करता है।
इससे असमानता के विरुद्ध नीतियों का दायरा विस्तारित होता है।
साथ ही, यह संवैधानिक ढाँचा बहु-सांस्कृतिक भारत के लिए एक सहनशील मंच बनाता है।
भविष्य में यदि कोई समान चुनौती आती है, तो यह मिसाल कार्य करेगी।
अंत में, यह फैसला भारतीय लोकतंत्र की लचीलापन और अनुकूलन क्षमता को दर्शाता है।

Aditi Jain

Aditi Jain

नवंबर 27, 2024 AT 04:13

भारत का संविधान ही हमारे राष्ट्रीय गौरव का आधार है, और इस फैसले ने हमारे समाजवादी और पंथनिरपेक्ष मूल्यों को सुदृढ़ किया। यह एक बार फिर सिद्ध करता है कि हमारे नेताओं ने सही दिशा में कदम बढ़ाया है, जिससे राष्ट्र की एकता और अखंडता मजबूत हुई है।

arun great

arun great

नवंबर 27, 2024 AT 04:23

सही कहा, यह निर्णय हमारे लोकतांत्रिक ढाँचे को और मज़बूत बनाता है। इसे समझना और अपनाना सभी नागरिकों के लिए लाभदायक है। 😊

Anirban Chakraborty

Anirban Chakraborty

नवंबर 27, 2024 AT 04:33

भले ही निर्णय सकारात्मक हो, यह याद रखना ज़रूरी है कि मूल्यों की सच्ची परख तभी होती है जब राज्य हर नागरिक के लिए समान अवसर प्रदान करे। केवल कानूनी मान्यताएँ नहीं, वास्तविक कार्यवाही ही मुख्य है।

Krishna Saikia

Krishna Saikia

नवंबर 27, 2024 AT 05:36

देश की भावना को उजागर करने वाला यह कदम, न केवल विदेशियों के सामने हमारी प्रतिष्ठा बढ़ाता है, बल्कि हमारे युवा वर्ग में राष्ट्रीय चेतना को भी प्रज्वलित करता है!!

Meenal Khanchandani

Meenal Khanchandani

नवंबर 27, 2024 AT 05:46

वास्तव में, संविधान की इस भावना को हर दिन लागू करना ही हमारी जिम्मेदारी है।

Anurag Kumar

Anurag Kumar

नवंबर 27, 2024 AT 06:43

समजना आसान है: 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्दों का अर्थ है कि राज्य सभी के लिए समान प्रसन्नता और अवसर सुनिश्चित करेगा, जबकि किसी भी धार्मिक समूह को विशेष लाभ नहीं देगा। इस सिद्धांत को लागू करने के लिए नीतियों में पारदर्शिता और जवाबदेही आवश्यक है।

Prashant Jain

Prashant Jain

नवंबर 27, 2024 AT 06:53

संक्षेप में, यह सिद्धांत केवल कागज़ पर नहीं, बल्कि सरकारी कार्यों में प्रतिबिंबित होना चाहिए।

DN Kiri (Gajen) Phangcho

DN Kiri (Gajen) Phangcho

नवंबर 27, 2024 AT 07:50

आइए हम सब मिलकर इस निर्णय को व्यवहार में लाएँ, ताकि सामाजिक समता और धर्मनिरपेक्षता हमारे दैनिक जीवन में परिलक्षित हो सके।

Yash Kumar

Yash Kumar

नवंबर 27, 2024 AT 08:00

हालांकि, यह मानना कि केवल एक फ़ैसला ही सभी समस्याओं का समाधान कर देगा, थोड़ा अतिरंजित हो सकता है। वास्तविक परिवर्तन के लिए नींव से नीति सुधार और जनसंवाद चाहिए।

Aishwarya R

Aishwarya R

नवंबर 27, 2024 AT 09:00

संविधान में इस प्रकार के संशोधन भारत की निरंतर प्रगति का संकेत हैं।

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