कृत्रिम बारिश: तकनीक, उपयोग और भारत में इसकी अभी की स्थिति
जब बारिश नहीं हो रही होती है, तो क्या हम खुद बारिश बना सकते हैं? ये सुनकर लगता है जैसे कोई विज्ञान कथा हो, लेकिन कृत्रिम बारिश, एक वैज्ञानिक प्रक्रिया जिसमें बादलों में रासायनिक पदार्थ छिड़ककर बारिश को शुरू किया जाता है आज दुनिया के कई हिस्सों में असली हो चुकी है। इसे बारिश उत्पन्न करना, मौसम नियंत्रण या बादल बीजन भी कहते हैं। ये तकनीक सिर्फ बाढ़ या सूखे के खतरे को कम करने के लिए नहीं, बल्कि खेती, पानी की आपूर्ति और बिजली उत्पादन के लिए भी इस्तेमाल हो रही है।
इसका मुख्य तरीका है — बादलों में सिल्वर आयोडाइड या नमक के कण छिड़कना। ये कण बादल के अंदर पानी की बूंदों को जमने और भारी होकर नीचे गिरने का कारण बनते हैं। अगर बादल ही न हों, तो ये तकनीक काम नहीं करती। ये सिर्फ बादलों को जगाने का काम करती है, न कि बादल बनाने का। भारत में इसका इस्तेमाल महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अक्सर देखा गया है, खासकर जब बारिश देर से हो रही हो या बाढ़ के बाद जल संकट बढ़ रहा हो। कुछ स्थानों पर इसका इस्तेमाल टेनिस कोर्ट या एयरपोर्ट के आसपास बारिश रोकने के लिए भी किया जाता है।
लेकिन ये तकनीक जादू नहीं है। इसकी सफलता पर बादलों की मात्रा, ऊंचाई, नमी और हवाओं का दबाव बहुत असर करता है। कभी-कभी एक राज्य को बारिश मिल जाती है, तो उसके पड़ोसी राज्य को सूखा लगता है — इसलिए इसे लेकर विवाद भी होते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी प्रभावशीलता 30-40% तक हो सकती है, लेकिन ये आंकड़ा बहुत अलग-अलग होता है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) और ISRO इस तकनीक के लिए अलग-अलग प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक इसे बड़े पैमाने पर लागू नहीं किया गया है।
अगर आपने देखा होगा कि कुछ जगहों पर बारिश के बाद आसमान साफ हो जाता है, तो शायद वहाँ बाढ़ नियंत्रण, कृत्रिम बारिश का उपयोग बारिश के समय को नियंत्रित करने के लिए किया जाना किया गया है। या फिर, जब आपने सुना हो कि एक गाँव को तीन महीने से पानी नहीं मिल रहा था, लेकिन एक दिन अचानक बारिश हो गई — शायद वहीं जल संकट, पानी की कमी के कारण उत्पन्न सामाजिक और आर्थिक समस्याएँ को कम करने के लिए यह तकनीक लागू की गई हो।
इस लिस्ट में आपको ऐसे ही वास्तविक मामले मिलेंगे — जहाँ भारत में कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल हुआ है, जहाँ इसकी कोशिश नाकाम रही है, और जहाँ इसने जान बचाई है। आप देखेंगे कि कैसे एक छोटी सी रासायनिक छिड़काव ने एक पूरे जिले की किसानी को बचा दिया, या फिर एक बड़े शहर को बाढ़ से बचाया। ये सिर्फ विज्ञान नहीं, ये जीवन बचाने की कहानियाँ हैं।
30 अक्तूबर 2025
Rakesh Kundu
दिल्ली सरकार ने क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम बारिश की तैयारी पूरी कर ली है, जिससे 30 अक्टूबर को प्रदूषण में राहत की उम्मीद है। AQI 400 के पार, लगातार 17 दिन जहरीली हवा के बाद यह एक नई उम्मीद है।
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