ओवैसी के जयकारों से उपजा विवाद
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में लोकसभा में अपने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान 'जय तेलंगाना' और 'जय फिलिस्तीन' के नारे लगाकर एक नए राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। उनके इस कदम से संसद में माहौल गर्म हो गया, और कई राजनीतिक नेताओं ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी। खासतौर पर, ओवैसी की आलोचना की गई कि उन्होंने एक विदेशी देश के समर्थन में नारा लगाने की क्या जरूरत थी, और क्या यह भारतीय संसद की गरिमा के अनुकूल है?
राजनीतिक प्रतिक्रिया और विचार
ओवैसी ने अपने इस कृत्य का बचाव करते हुए कहा कि उनके बयान संविधान के तहत हैं और किसी भी प्रकार की खोखली धमकियाँ उन्हें चुप नहीं कर सकतीं। उन्होंने यह भी कहा कि फिलिस्तीन के लोगों की पीड़ा को देखते हुए उन्होंने यह नारा लगाया। उनके शब्दों में, "मैं महात्मा गांधी के विचारों का पालन करता हूँ, जिन्होंने हमेशा फिलिस्तीन के लोगों के लिए समर्थन व्यक्त किया था।"
संविधान के अनुरूप
ओवैसी ने अपने बयानों को संविधान के अनुरूप बताते हुए कहा कि कोई भी संवैधानिक प्रावधान उनके इस कदम को गलत साबित नहीं करता। उन्होंने कहा कि लोकसभा में अपनी बात रखने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का उन्हें पूरा अधिकार है।
किरन रिजिजू की आलोचना
दूसरी ओर, संसदीय मामलों के मंत्री किरन रिजिजू ने ओवैसी के इस कदम की कठोरता से आलोचना की है। उन्होंने इसे न केवल अनुचित बताया बल्कि जोर दिया कि शपथ ग्रहण समारोह के दौरान ऐसे नारे लगाना एक गैर-समझदार कदम है। रिजिजू ने कहा कि भारत का फिलिस्तीन के प्रति कोई दुश्मनी नहीं है, लेकिन संसद का एक सम्मानित स्थान है और इस प्रकार के नारे वहां नहीं लगने चाहिए।
निभाने होंगे नियम
रिजिजू ने यह भी संकेत दिया कि संसद में नियमों की समीक्षा की आवश्यकता हो सकती है ताकि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हो। उन्होंने कहा कि संसद सदस्य किसी भी देश को लेकर अपने व्यक्तिगत विचार रख सकते हैं, लेकिन संसद के पटल पर वही बातें कहनी चाहिए जो भारत के हित में हों और संसद की गरिमा को बढ़ाएं।
जनता की प्रतिक्रिया
इस पूरे मामले पर जनता की भी मिली-जुली प्रतिक्रियाएं रही हैं। कुछ लोगों ने ओवैसी के इस कदम की सराहना की है, जबकि कुछ ने इसे पूरी तरह से अनुचित करार दिया है। सोशल मीडिया पर इस घटना की चर्चा तेज हो गई है और लोग अपने-अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।
लोकसभा में भविष्य की दिशा
इस घटना ने लोकसभा में भिन्न भिन्न विचारधाराओं को एक बार फिर से सामने ला दिया है। यह देखना बाकी है कि आने वाले दिनों में संसद में इस मुद्दे पर क्या कदम उठाए जाते हैं और क्या इस बारे में कोई नई नियमावली लागू की जाती है। ओवैसी की इस बयानबाजी से विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तनाव और भी बढ़ गया है।
असदुद्दीन ओवैसी का दृष्टिकोण
असदुद्दीन ओवैसी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह केवल अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करना चाहते थे और किसी भीादेश के विरोध में नहीं थे। उन्होंने कहा कि उनका नारा किसी भी प्रकार की नकारात्मकता को प्रोत्साहित करने के लिए नहीं था, बल्कि उन्होंने उसका उद्देश्य पारस्परिक सहयोग और वैश्विक मानवीयता को बढ़ावा देना बताया।
5 टिप्पणि
Anurag Kumar
जून 26, 2024 AT 18:38ओवैसी का नारा सुनके कुछ लोग सीधे समझते हैं कि वह अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को भी अपने मंच पर लाना चाहते हैं। लेकिन संसद का माहौल थोड़ा अलग होता है, यहाँ पर राष्ट्रीय मुद्दों पर ही अधिक फोकस रहता है। इस तरह का बयान जनता में असहजता पैदा कर सकता है, खासकर जब कई लोग इसे राजनीतिक प्रदर्शन समझते हैं। फिर भी अगर वह फिलिस्तीन के लोगों की मानवीय पीड़ा को उजागर करना चाहते हैं तो इसे अधिक संवेदनशीलता से करना चाहिए।
Prashant Jain
जून 26, 2024 AT 18:38यह पूरी तरह से बेवकूफी भरा दिखावा है।
DN Kiri (Gajen) Phangcho
जून 26, 2024 AT 19:40भाई लोगों चाहिये कि हम सब एक दूसरे की आवाज़ सुनें चाहे वो किस भी मुद्दे पे हो ये सोच बहुत अच्छा है लेकिन संसद में ऐसे उछाल कभी‑कभी गलत समझे जा सकते हैं हम सबको जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए न कि और ज्यादा खींचतान पैदा करने की अभी की स्थिति में एकजुटता ज़्यादा जरूरी है इसलिए ओवैसी के इरादे को समझें लेकिन साथ ही नियमों का भी सम्मान करें
Yash Kumar
जुलाई 3, 2024 AT 12:46पहला बात तो यह है कि राजनैतिक मंच पर भावनाओं को व्यक्त करना स्वाभाविक है
लेकिन जब वह भावना संसद की गरिमा से टकराती है तो सवाल उठना ही लगता है
ओवैसी ने जो कहा वह शायद व्यक्तिगत नज़रिए से सही हो सकता है
परंतु जनसंख्या के विशाल स्तर पर ऐसी बातें बड़बड़ाने से गड़बड़ी होती है
फिलिस्तीन की पीड़ा है वाकई में दिल दुखाने वाली लेकिन उसे भारत की राजनीति में लेकर आना अलग मुद्दा है
ऐसे नारे कभी‑कभी राष्ट्रीय एकता को कमजोर कर सकते हैं
भाई लोग अक्सर देखेंगे कि ये किस तरह के परिणाम लाएगा
संसद में नियम होते हैं और उनका उल्लंघन नहीं होना चाहिए
समय के साथ अगर ऐसे मामलों को रोका नहीं गया तो अव्यवस्था बढ़ेगी
किसी भी व्यक्ति का अधिकार है अपनी बात कहने का लेकिन वह सम्मान के साथ कहे
कभी‑कभी जनता भी समझदार होती है और वे नारे के पीछे की सच्ची भावना को पहचान लेती है
फिर भी इस तरह की घटनाओं से संसद के माहौल पर असर पड़ता है
हमें चाहिए कि नारी-पुरुष बंधु इस मुद्दे को सिविलिप्पी बातचीत में ले जाएं
संविधान के तहत अभिव्यक्तियों को भी सीमाएं होती हैं यह सच है
अंत में यही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र के अन्दर विविध मतों को स्थान है पर उसे अनुशासन के साथ पेश किया जाना चाहिए
Aishwarya R
अगस्त 30, 2024 AT 09:40न्याय के नाम पर इतनी भावनात्मक चलनी नहीं चाहिए यह सिर्फ दिखावा है और जब तक नियमों की अदावती नहीं होगी तब तक सबकुछ बेमानी रहेगा