23 сентября 2025 को सिटापुर के जेल द्वार से अज़ाम खान ने कदम बाहर रखा, लगभग दो साल की कैद गुमराह नहीं रही। उनके साथ दो बेटे, अब्दुल्ला और अदीब, एक निजी कार में सवार होकर अपने गढ़ शहर रामपुर की ओर रवाना हुए। इस रिहाई को लेकर सर्कस का माहौल, सुरक्षा के कड़ी उपाय और राजनैतिक अफवाहों ने सबको घेर रखा था।
रिहाई का माहौल
जैसे ही जेल के द्वार खुले, अदीब अज़ाम खान ने सुबह जल्दी से लेकर जेल के पास परेड कर रहे समर्थकों को देखा। पार्टी के कई बड़े नेता, जिसमें राष्ट्रीय सचिव अनु उपर गुप्ता, मोरादाबाद सांसद रूची वीरा और जिला अध्यक्ष चातुर्पति यादव शामिल थे, भीड़ में थे। हजारों पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक लाउडस्पीकर की चेतावनी के बावजूद इकट्ठा हुए, जिससे पुलिस ने सेक्शन 144 लागू कर दिया।
जेल में तब तक रिहाई नहीं हो सकी क्योंकि रैंपुर कोर्ट द्वारा तय 8,000 रुपये के जुर्माने का भुगतान अभी तक नहीं हुआ था। यह जानकारी जेल प्रबंधन को मिलते ही सबसे पहले 10 बजे फॅक्स के माध्यम से भेजी गई। अंत में क़ज़ी फ़रहान उल्ला खान ने भुगतान कर दिया और रिहाई का आदेश जारी हो गया।
सुरक्षा का माहौल कड़ा था। सिटापुर के सभी मुख्य चौकियों में 100 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात थे, और मोटर गश्त का विशेष प्रबंध किया गया। ध्वनि-प्रकाश व्यवस्था के साथ भीड़ को नियंत्रण में रखने की कोशिश की गई, लेकिन फिर भी काफी संख्या में जनता जेल के आसपास इकट्ठा हो गई।
राजनीतिक परिपेक्ष्य
रिहाई के बाद अज़ाम खान ने मीडिया से बात नहीं की, पर खिड़की से हाथ हिलाते हुए अपने सहयोगियों को धन्यवाद कहा। बायजु पार्टी में शामिल होने की अफवाहों को उन्होंने खारिज कर कहा, यह बताते हुए कि जेल में रहते हुए उन्हें फोन नहीं दिया गया था। इस दौरान समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि अगर पार्टी फिर से सरकार बनती है, तो सभी "झूठे" केस वापस ले ली जाएँगे।
शिवपाल सिंह यादव ने यादी सरकार पर हमला किया, और कहा कि अज़ाम खान पर कई मामलों में "फ्रेम" किया गया है। तत्कालीन महिला सांसद रूची वीरा ने भी कहा कि यह रिहाई पार्टी के लिए एक "ज्वालामुखी" होगी, क्योंकि कई सीटों में अभ्यर्थियों की स्थिति इस पर निर्भर कर सकती है।
कुल मिलाकर अज़ाम खान के खिलाफ 104 केस दायर थे, जिनमें से 72 पर अदालत ने रिहाई का आदेश दिया था। प्रमुख मामला क्वालिटी बार भूमि अतिक्रमण था, जिसका बाइल 2025 में अलाहाबाद उच्च अदालत ने दिया था। इस रिहाई से यूपी की राजनैतिक धारा में नयी लहर आ गई है, जहाँ सभी प्रमुख पार्टियाँ इस बदलाव का फायदा उठाने की कोशिश में लगी हुई हैं।
7 टिप्पणि
Chandra Soni
सितंबर 24, 2025 AT 00:34अज़ाम खान का रिहा होना एक बड़ी शक्ति शालीना इवेंट जैसा था, जहाँ पार्टी के हर इडिया ने हाई‑एंड जर्गन डाली। इस मोमेंट में जनमण्डली ने एनर्जी लेवल इतना बढ़ा दिया कि सीएसआर को भी हिला दिया। अब एजेंडा सेटिंग में नया डायनेमिकज्म इम्प्लीमेंट होने वाला है, देखते है कौन‑स कौन ट्रेंड सेट करेगा। यह सब सिवाय रणनीति के फोकस के नहीं, बल्की बेसिक वोटर पालिसी पे भी असर डालेगा।
Kanhaiya Singh
सितंबर 30, 2025 AT 23:14यह रिहाई, चाहे कितनी भी राजनैतिक चमक रखती हो, एक गहरी उदासी का अहसास देती है, क्योंकि इस प्रक्रिया में कई आशाएँ टुटी‑फूटी हैं। वाक्यांशों में अभिव्यक्त व्यथा स्पष्ट है, और यह मुद्दा सामाजिक बंधनों को भी उजागर करता है।
prabin khadgi
अक्तूबर 7, 2025 AT 21:54अज़ाम खान की रिहाई को देख कर प्रथम प्रश्न उत्पन्न होता है: यह घटनाक्रम लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की सुदृढ़ता को किस सीमा तक दर्शाता है?
दूसरा, इस प्रकार के निर्णयों का नीति‑निर्माण पर क्या प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा, यह विश्लेषण आवश्यक है।
तीसरे, यह स्पष्ट है कि न्यायिक संस्थाएँ वित्तीय दायित्वों को पूरा किए बिना रिहाई नहीं दे पातीं, जिससे न्यायिक प्रयोगशाला का सिद्धांत प्रकट होता है।
चौथे, सामाजिक-आर्थिक वर्गियां इस घटनाक्रम को अपनी दायित्व समझें और आगे के राजनीतिक परिदृश्य में सक्रिय रूप से भाग लें।
पाँचवे, इस रिहाई के बाद सुरक्षा व्यवस्था का री‑इवैल्यूएशन आवश्यक है, क्योंकि सार्वजनिक स्थिरता पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है।
छठे, मीडिया की भूमिका निष्पक्षता से कहीं अधिक प्रभावित होनी चाहिए, न कि केवल सनसनीखेज रिपोर्ट से।
सातवे, राजनीतिक पार्टियों को इस अवसर का प्रयोग करके अपने अंडर ग्राउंड नेटवर्क को सुदृढ़ करना चाहिए, न कि केवल सतह पर प्रदर्शन।
आठवें, जनमत में परिवर्तन को मापने हेतु सर्वेक्षणों को समय पर लागू किया जाना चाहिए, जिससे डेटा‑ड्रिवन निर्णय संभव हो।
नवें, इस प्रकार की रिहाई से भविष्य में कानूनी प्रक्रिया में सुधार की दिशा में प्रेर्सना मिल सकती है।
दसवें, यह भी कहा जा सकता है कि इस घटना ने राजनैतिक रणनीतियों को पुनःसमायोजित करने की आवश्यकता पैदा कर दी है।
ग्यारहवें, इस पुनःसमायोजन में सहयोगी गठबंधन के निर्माण में नई परतें जुड़ेंगी।
बारहवें, इस पुनःसंरचना से संभावित रूप से चुनावी समीकरण में परिवर्तन आएगा, जो बिदेशी एवं घरेलू नीतियों को भी प्रभावित करेगा।
तेरहवें, इस परिवर्तन को समझने के लिये हमें दार्शनिक दृष्टिकोण से भी विश्लेषण करना चाहिए, क्योंकि राजनीतिक शक्ति सत्ता की ही नहीं, बल्कि सामाजिक विचारधारा की भी परीक्षा है।
चौदहवें, अंत में यह निष्कर्ष निकलता है कि इस प्रकार की रिहाई को केवल एक व्यक्तिगत मोमेंट के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया के एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में समूहित करना चाहिए।
Aman Saifi
अक्तूबर 14, 2025 AT 20:34रिहाई के बाद जनता का उत्सव और सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था दोनों ही एक साथ चल रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि समाज में संतुलन बनाने की कोशिश जारी है। इस परिप्रेक्ष्य में हमें यह देखना चाहिए कि विभिन्न वर्गों की आवाज़ें किस हद तक सुनी जा रही हैं, और क्या इससे कोई सच्चा संवाद बन रहा है।
Ashutosh Sharma
अक्तूबर 21, 2025 AT 19:14वाह, अब तो टीवी भी सोर्स कोड नहीं पाएगा।
Rana Ranjit
अक्तूबर 28, 2025 AT 17:54जेल से बाहर कदम रखे अज़ाम भाई, इस मोमेंट को मैं एक जीवंत दर्शन कहूँगा-क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं या फिर इतिहास के चक्र में फँसे हुए हैं? चलिए इस बात को खुली हवा में चर्चा करते हैं, क्योंकि हर नई कहानी में एक नई सीख छिपी होती है।
Arundhati Barman Roy
नवंबर 4, 2025 AT 16:34बहुत महत्त्व्पूर्णी बाते हैं, लेकिन कभि‑कभि लज्जित लायन लिखते वक़्त टाइपिंग त्रुटी भी आ जायें।