फिल्म 'औरों में कहाँ दम था' समीक्षा: अजय देवगन और तब्बू की फिल्म की धीमी रफ्तार और पुनरावृत्त कहानी
2 अगस्त 2024 19 टिप्पणि Rakesh Kundu

फिल्म 'औरों में कहाँ दम था' के निर्देशक नीरज पांडे ने दर्शकों के सामने एक प्रेम कथा प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जिसमें मुख्य कलाकार अजय देवगन और तब्बू हैं। कहानी का प्रारंभ कृष्णा (अजय देवगन) की जेल से रिहाई से होता है, जिसने 23 साल की सजा काटी है। कहानी फ्लैशबैक और वर्तमान के बीच अनिलेर स्टाइल में लय बनाते हुए चलती है।

कृष्णा को हत्या के आरोप में सजा मिली थी, और उसकी रिहाई के बाद वह अपने पुराने प्रेम वसुंधरा (तब्बू) से मिलता है। इस दौरान कहानी भक्तियों और वर्तमानी समय के बीच झूलती रहती है, जिससे दर्शक यह जानने की कोशिश करते हैं कि कृष्णा ने अपराध क्यों किया और अब वसुंधरा के साथ उसके रिश्ते का क्या हाल है।

फिल्म की धीमी गति और परिचित प्लॉट के कारण दर्शकों को जोड़ने में असमर्थ रहती है। हालांकि, अजय देवगन और तब्बू ने अपने भूमिकाओं में जान डालने की पूरी कोशिश की है, लेकिन पटकथा की सीमाओं के कारण यह फिल्म ज्यादा प्रभाव छोड़ने में विफल रहती है।

कहानी और प्रदर्शन

फिल्म की शुरुआत जेल से रिहा होने के बाद कृष्णा के बदलते जीवन से होती है। उसकी मुलाकात वसुंधरा से होती है, लेकिन यह मुलाकात साधारण नहीं है। उनके बीच की कहानी फ्लैशबैक में दिखाने की कोशिश की गई है, जो काफी धीमी गति से चलती है।

अजय देवगन ने कृष्णा की भूमिका को पूरी ईमानदारी से निभाया है। उनकी आंखों में दर्द और पछतावा दिखता है, लेकिन कहानी के धीमेपन के कारण यह प्रभाव दर्शकों तक पहुंच नहीं पाता। तब्बू ने वसुंधरा के किरदार में अपनी भूमिका को बखूबी निभाया है। उनके अभिनय में गहराई और भावनात्मक जुड़ाव दिखता है, लेकिन फिल्म की पूरी कथा में कही ना कही कमी महसूस होती है।

फिल्म का संगीत

फिल्म का संगीत

फिल्म का संगीत एम.एम. क्रीम द्वारा रचा गया है, जो इस पूरे फिल्म का एकमात्र सकारात्मक पहलू है। गाने सुनने योग्य हैं और कहानी में कुछ हद तक जान डालते हैं। फिर भी, संगीत के बिना फिल्म बेजान सी लगेगी।

नि:संदेह यह कहना गलत नहीं होगा कि

जिस प्रकार दर्शकों को नीरज पांडे से उम्मीदें रहती हैं, इस बार वह उन पर खरा नहीं उतर पाए हैं। नीरज पांडे की पिछली फिल्मों में दर्शकों ने गजब का रोमांच, सस्पेंस और तीव्रता देखी है, लेकिन 'औरों में कहाँ दम था' इनमें से किसी भी तत्व पर खरी नहीं उतर पाती।

फिल्म में और भी सह-कलाकार शामिल हैं, जिनमें जिमी शेरगिल, शंतनु माहेश्वरी, और सई मांजरेकर प्रमुख हैं। शंतनु और सई ने क्रमश: कृष्णा और वसुंधरा के छोटे संस्करणों की भूमिका निभाई है। उनकी जोड़ियों में एक नई ताजगी दिखती है, लेकिन मुख्य कथा की कमजोरियों के कारण यह फिल्म में जीवंत नहीं हो पाती।

कुल मिलाकर 'औरों में कहाँ दम था' दर्शकों को अपने धीमे और पुरानी रिटेन फिल्म प्लॉट के चलते बोर कर देती है। जहाँ एक तरफ अजय देवगन और तब्बू का अभिनय काबिले-तारीफ है, वहीं कहानी में नवीनता और रोमांच की कमी इसे कमजोर बना देती है। इस फिल्म की समग्रिक अवधारणा में दम नहीं था, और यह दर्शकों को ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाएगी।

फिल्म का तकनीकी पक्ष

फिल्म का तकनीकी पक्ष भी कुछ खास उत्साहजनक नहीं है। कैमरा वर्क और सिनेमैटोग्राफी ने फिल्म को देखने लायक बनाने की कोशिश की है, लेकिन कहानी की धारा इतनी धीमी है कि यह तकनीकी पहलु भी इसे खींच नहीं पाते।

निर्देशक नीरज पांडे ने फिल्म में एक यथार्थवादी दृष्टिकोण लाने की कोशिश की है, लेकिन कहानी की संरचना में कुछ नयापन और जीवंतता की कमी है।

आखिरी विचार

आखिरी विचार

'औरों में कहाँ दम था' एक ऐसी फिल्म है जो अपनी धीमी गति, पुरानी कहानी और भावनात्मक रूप से कमज़ोर मटेरियल के चलते दर्शकों को निराश करती है। अजय देवगन और तब्बू के उत्कृष्ट प्रदर्शन के बावजूद, फिल्म की कमजोर पटकथा और सामान्य निर्देशन इसे एक औसतन उपक्रम बनाते हैं। यदि आप दोनों अभिनेताओं के बड़े प्रशंसक हैं, तो यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है, अन्यथा यह समय की बर्बादी साबित हो सकती है।

Rakesh Kundu

Rakesh Kundu

मैं एक समाचार संवाददाता हूं जो दैनिक समाचार के बारे में लिखता है, विशेषकर भारतीय राजनीति, सामाजिक मुद्दे और आर्थिक विकास पर। मेरा मानना है कि सूचना की ताकत लोगों को सशक्त कर सकती है।

19 टिप्पणि

Apurva Pandya

Apurva Pandya

अगस्त 2, 2024 AT 18:54

ऐसे फ़िल्मों में नैतिकता की कमी है, दर्शकों को धोखा दिया जाता है। 😊

Nishtha Sood

Nishtha Sood

अगस्त 8, 2024 AT 09:53

अभिनेताओं की कोशिश़ काबिल‑ए‑तारीफ़ थी, लेकिन कहानी की गति कई दर्शकों को थका देती है। आशा है अगली बार कुछ नया देखने को मिलेगा।

Hiren Patel

Hiren Patel

अगस्त 13, 2024 AT 01:00

पहले तो मैं कहूँगा कि इस फिल्म ने मेरे अंदर एक अजीब सा जुगनू जगा दिया, जो लगातार टिमटिमाता रहा।
बिल्कुल वैसा ही जैसे पुरानी सड़कों की धुंधली रोशनी में कई रंगीन परछाइयाँ नाचती हैं।
किरदारों के बीच का नाता एक जटिल जाल जैसा था, जो कभी‑कभी समेटा तो, तो कभी बिखरता भी था।
अजय की आँखों में छिपा दर्द, तब्बू की आँखों में झलकता अतीत, दोनों मिलकर एक मोहमयी माहौल बनाते हैं।
फ्लैशबैक का प्रयोग, अगर सही ढंग से किया गया होता, तो दर्शकों को और गहराई तक ले जाता।
दुर्भाग्य से, धीरज की कमी ने इस प्रेरक सन्देश को पिचले स्वर में बदल दिया।
संगीत, जो मूल रूप से फिल्म को उठाने वाला था, वह भी कई बार सुनने वाले को भटकाता महसूस हुआ।
फिर भी, जब वह गाना शुरू होता है, तो एक छोटी सी आशा की लहर आती है, जो दिल को हल्का कर देती है।
एक बात जरूर कहूँगा: निर्देशक ने यदि कहानी की गति को तेज़ कर देते तो यह पॉलिश्ड जेम बन सकता था।
वर्तमान में यह फिल्म बहुत ही “स्लो मोशन” में चल रही है, जैसे कि एक धीमी नदी के किनारे बैठा हो।
कुल मिलाकर, जितनी कहानी की कोशिश़ थी, उतना असर नहीं लाया।
कहानी की दोहराव वाले हिस्से, जैसे एक ही पन्ने को बार‑बार पढ़ना, थकावू था।
परंतु, अभिनेता की ऊर्जा और समर्पण ने इस खालीपन को यथासंभव भर दिया।
आखिर में, यदि आप समय और धैर्य के साथ इसे देखेंगे, तो शायद आप भी इस जुगनू को अपनी आँखों में पकड़ सकेंगे।
परंतु, यदि आप गति और ताजगी की तलाश में हैं, तो यह फिल्म शायद आपका ऑप्शन न हो।

Heena Shaikh

Heena Shaikh

अगस्त 18, 2024 AT 19:53

यदि हम इस कथा को अस्तित्व के प्रतिबिंब के रूप में देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि पुनरावृत्ति केवल बौद्धिक आलस्य का प्रतीक है; यह दर्शकों को प्रश्नों के बजाय उत्तरों की ही थाली दे रहा है, जबकि असली सवाल तो अभी भी अनसुलझा है।

Chandra Soni

Chandra Soni

अगस्त 24, 2024 AT 14:46

चलो टीम, इस फ़िल्म को एक केस‑स्टडी के तौर पर लेते हैं जहाँ हम सिनेमाई डिलिवरी की KPI‑सेंकड़ों को एनालाइज़ कर सकते हैं; यहाँ पर एंगेजमेंट रेट घटा है, लेकिन एक्ट्रेस के इमोशनल इंटेन्सिटी को हाई‑परफ़ॉर्मेंस मेट्रिक माना जा सकता है।
सिनेमैटिक जार्गन में कहें तो, प्रॉडक्शन वैल्यू ने कुछ एक्सपोज़र बीफ़ोर इंट्रॉस्पेक्टिव मोमेंट्स को कॉम्पेंसेट किया है, लेकिन नैरेटिव टेम्पो को रिफ़ाइन करने की ज़रूरत है।
यदि हम अगली बार स्क्रिप्ट‑पीवटिंग को एन्हांस कर सकें तो ऑडियंस रिटेंशन में इम्प्रूवमेंट देखेंगे।

Kanhaiya Singh

Kanhaiya Singh

अगस्त 30, 2024 AT 09:40

फिल्म का थीमैटिक फोकस सराहनीय है, परंतु प्रस्तुतिकरण में मामूली असंगति ने समग्र प्रभाव को कमज़ोर कर दिया है। 🙏

prabin khadgi

prabin khadgi

सितंबर 5, 2024 AT 04:33

ध्यान दें, यदि हम फिल्म में प्रस्तुत नैतिक द्वंद्व का शैक्षणिक विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट होता है कि निर्देशक ने प्रस्तावित परिकल्पना को पर्याप्त साक्ष्य के बिना समर्थन किया है; यह असंतुलित तर्कसंगतता दर्शकों के बौद्धिक संतुलन को बाधित करती है।

Aman Saifi

Aman Saifi

सितंबर 10, 2024 AT 23:26

फ़िल्म ने कोशिश की है कि कांग्रेसिएंट विचारधारा को प्रस्तुत किया जाए, फिर भी यह बात समझना ज़रूरी है कि विविध दृष्टिकोणों को एक ही फ्रेम में संकलित करना चुनौतीपूर्ण होता है।

Ashutosh Sharma

Ashutosh Sharma

सितंबर 16, 2024 AT 18:20

वाह, क्या बेकार प्रयास है, जैसे कि हर साल वही पुराने चक्र में लुढ़कते रहना। यह फिल्म तो बिल्कुल भी नई चीज़ नहीं लाती, बल्कि जॉर्ज बर्नार्ड को भी बोर कर देगी।

Rana Ranjit

Rana Ranjit

सितंबर 22, 2024 AT 13:13

अरे यार, फ़िल्म तो बहुत ही बोरिंग थी, लेकिन एक बात समझ में आई कि अगर निर्देशक ने थोड़ा रचनात्मक सोच रखा होता तो क्या मज़ा आता! वास्तव में, यह कहानी का बुनियादी ढांचा ठीक था, पर एक्सीक्यूशन में काफी कमी थी।

Arundhati Barman Roy

Arundhati Barman Roy

सितंबर 28, 2024 AT 08:06

फ़िल्म कॆ बारे मेँ कुछ विचार है। प्रदर्शन तो ठीक है, पर पटकथा बेतुकी लगती है।

yogesh jassal

yogesh jassal

अक्तूबर 4, 2024 AT 03:00

देखो, अगर आप एक हल्की‑फुलकी रोमान्टिक फ़िल्म की तलाश में हैं तो यह शायद आपके लिये सही नहीं है-लेकिन कम से कम अजय और तब्बू ने अपना दिल डाल दिया है, है ना? 😏

Raj Chumi

Raj Chumi

अक्तूबर 9, 2024 AT 21:53

क्या बात है यार ये फिल्म एकदम बकवास है

mohit singhal

mohit singhal

अक्तूबर 15, 2024 AT 16:46

देश के सच्चे दर्शक को यह फिल्म देखनी चाहिए! 🇮🇳🔥 यह हमारी सांस्कृतिक पहचान को दर्शाती है और कोई इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता।

pradeep sathe

pradeep sathe

अक्तूबर 21, 2024 AT 11:40

दिल से कहूँ तो, अजय‑तब्बू की परफॉर्मेंस ने इस सपाट कहानी को थोड़ा बचाया, लेकिन बाकी सब कुछ बकवास है।

ARIJIT MANDAL

ARIJIT MANDAL

अक्तूबर 27, 2024 AT 06:33

बकवास, टाइम बर्बाद।

Bikkey Munda

Bikkey Munda

नवंबर 2, 2024 AT 01:26

यदि आप इस फ़िल्म को समझना चाहते हैं तो पहले उसके थीम और पात्रों के अंतर‑संबंध को देखें; इससे कहानी के कई पहलू स्पष्ट हो जाएंगे।

akash anand

akash anand

नवंबर 7, 2024 AT 20:20

ये फ़िल्म बिलकुल ही बेकार है, आपनो बर्बाद कर दिया।

BALAJI G

BALAJI G

नवंबर 13, 2024 AT 15:13

सिविलाइज़ेशन की नैतिक बुनियाद इस तरह के कचरे से डगमगाती है।

एक टिप्पणी लिखें