राज्य विभाजन क्या है और क्यों होता है?
राज्य विभाजन यानी किसी बड़े राज्य को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटना ताकि प्रशासन बेहतर हो सके, स्थानीय पहचान का सम्मान हो और विकास त्वरित हो। अक्सर यह मांग भाषा, संस्कृति, विकास असंतुलन या प्रशासनिक कठिनाइयों की वजह से उठती है। उदाहरण के तौर पर 2000 में झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड बने और 2014 में तेलंगाना अलग राज्य बना।
कानूनी प्रक्रिया — कदम दर कदम
भारत के संविधान का अनुच्छेद 3 राज्य विभाजन और नई सीमाओं की स्थापना का कानूनी आधार है। प्रक्रिया आमतौर पर ऐसी होती है: सरकार कोई प्रस्ताव तैयार करती है, राष्ट्रपति उसके मसौदे को संबंधित राज्य विधानसभाओं की राय के लिए भेजते हैं और फिर संसद में बिल पेश करके पास कराती है। ध्यान रखें, राज्य की राय पूछी जाती है पर वह बाध्यकारी नहीं होती। संसद के मंजूर करने के बाद राष्ट्रपति उस कानून को लागू करते हैं।
राज्य पुनर्गठन के लिए अक्सर स्टेट रियोर्गनाइज़ेशन कमिशन जैसी कमेटियाँ इतिहास में निर्देशिका रिपोर्ट देती रही हैं — 1953-55 में बनी स्टेट रि-ऑर्गनाइज़ेशन कमीशन की रिपोर्ट का आज भी संदर्भ लिया जाता है।
किस चीज पर ध्यान दिया जाता है?
रूढ़िवादी कारणों के अलावा कुछ ठोस मानदंड देखे जाते हैं — प्रशासनिक सुविधा, जनसांख्यिकीय व्यवहार, आर्थिक व्यवहार्यता, प्राकृतिक संसाधनों का बंटवारा और सीमा-संबंधी मुद्दे। कभी-कभी राजनीतिक दबाव और चुनावी समीकरण भी भूमिका निभाते हैं।
राज्य विभाजन के फायदे और नुकसान दोनों होते हैं। फायदे में स्थानीय प्रशासन का तेज निर्णय, छोटे क्षेत्र में लक्षित विकास और स्थानीय भाषा-समुदाय का संरक्षण शामिल है। नुकसान में संसाधनों का बंटना, नई संस्थाओं का खर्च, सीमाओं पर विवाद और कभी-कभी लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता हो सकती है।
क्या नागरिकों के लिए फर्क पड़ेगा? हाँ। स्थानीय स्तर पर सेवाएँ, बजट आवंटन और विकास परियोजनाएँ ज्यादा निकट और तेज़ हो सकती हैं। पर नए बॉर्डर, पानी और खनिज अधिकार जैसे मसले सार्वजनिक जीवन में नए विवाद भी ला सकते हैं।
नागरिक कैसे जुड़ सकते हैं? अगर आप किसी राज्य विभाजन के पक्ष में या खिलाफ हैं तो शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखें — स्थानीय प्रतिनिधियों (MLA/MP) से संपर्क करें, जनहित याचिकाएँ या पिटीशन बनाएं, समुदाय में सार्वजनिक चर्चा और मीडिया का इस्तेमाल करें। याद रखें कि संवैधानिक प्रक्रिया संसद के माध्यम से ही होती है, इसलिए राजनीतिक संवाद जरूरी है।
अंततः राज्य विभाजन सिर्फ मानचित्र पर बदलाव नहीं होता, बल्कि लोगों के रोजमर्रा जीवन और विकास की दिशा तय करता है। अगर आप किसी मांग या प्रस्ताव से जुड़े हैं तो तथ्यों, आर्थिक आंकड़ों और लोक-भावना को साथ रखते हुए संवाद करें। इससे निर्णय ज्यादा टिकाऊ और समझदारी पर आधरित होगा।
3 जून 2024
Rakesh Kundu
आंध्र प्रदेश पुनर्संरचना अधिनियम 2014 के अनुसार, हैदराबाद अब केवल तेलंगाना की राजधानी के रूप में काम करेगा। विभाजन के 10 वर्ष बाद, आंध्र प्रदेश की नई राजधानी बनाई जाएगी। तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे आंध्र प्रदेश को आवंटित भवनों को वापस लें। संपत्ति का विभाजन दोनों राज्यों के बीच अब भी विवाद का विषय है।
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