Wimbledon 2017: मुगुरुज़ा ने घास पर रचा इतिहास, वीनस के सपने चकनाचूर
26 अगस्त 2025 0 टिप्पणि Rakesh Kundu

घास के दरबार में नई रानी: मुगुरुज़ा का दबदबा, वीनस बेअसर

23 साल की गार्बिने मुगुरुज़ा ने विम्बलडन के सेंटर कोर्ट पर ऐसा टेनिस खेला कि 37 साल की वीनस विलियम्स को जवाब ही नहीं मिला। स्कोरलाइन 7-5, 6-0 सब कुछ बता देती है—पहले सेट में नसों पर काबू, दूसरे सेट में निर्बाध आक्रामकता। यह उनका पहला विम्बलडन और दूसरा ग्रैंड स्लैम खिताब है; 2016 में उन्होंने फ्रेंच ओपन जीता था। खास बात यह भी रही कि मुगुरुज़ा वही खिलाड़ी हैं जिन्होंने 2015 के विम्बलडन फाइनल में सेरेना विलियम्स से हार झेली थी। दो साल बाद, उसी मंच पर उन्होंने अपना अधूरा काम पूरा किया।

पहला सेट असली जंग था। वीनस ने तेज शुरुआत की, गहरी रिटर्न और फ्लैट फोरहैंड से मुगुरुज़ा को पीछे धकेला। 4-5 पर स्पेनिश खिलाड़ी की सर्विस पर दो सेट पॉइंट थे, लेकिन यहीं से तस्वीर बदल गई। मुगुरुज़ा ने दोनों मौके बचाए, बेसलाइन पर लंबी रैलियों में दम दिखाया और अगले ही गेम में वीनस की सर्विस तोड़ दी। 7-5 से सेट हाथ में आते ही उनका आत्मविश्वास अलग स्तर पर पहुंच गया। दूसरे सेट में उन्होंने लगातार छह गेम जीतकर 6-0 से फाइनल बंद कर दिया—वीनस को सांस लेने तक का मौका नहीं मिला।

मुगुरुज़ा का खेल संयम और ताकत का बैलेंस दिखा। उन्होंने चौड़ी एंगल्स से कोर्ट फैलाया, बैकहैंड डाउन-द-लाइन से वीनस की चाल काटी और पहले सर्व पर भरोसा बनाए रखा। रिटर्न गेम में भी उनका पैटर्न स्पष्ट था—शरीर की तरफ तेज रिटर्न, ताकि वीनस अपने लंबे स्विंग को सेट न कर पाएँ। दूसरी ओर, वीनस का फोरहैंड बार-बार फ्रेम पर लगा, और कुछ अहम ब्रेक पॉइंट्स पर उनकी सर्विस साथ नहीं दे पाई। बड़े पलों की यह बारीकी मैच का फर्क बनी।

यह खिताब स्पेनिश टेनिस के लिए भावुक पल भी है। 1994 में कॉनचिता मार्टिनेज ने विम्बलडन जीता था; 23 साल बाद एक और स्पेनिश महिला ने घास के इस दरबार में झंडा गाड़ा। संयोग देखिए, इस बार मुगुरुज़ा के साथ मार्टिनेज बतौर मेंटर रहीं। घास पर उनकी समझ ने गेम-प्लान को धार दी—कम स्लाइस, ज्यादा फ्लैट हिटिंग, और नेट पर चुनी हुई चढ़ाई। मुगुरुज़ा ने इसे बखूबी लागू किया।

वीनस के सफर को कम मत आँकिए। 2009 के बाद उनका पहला विम्बलडन फाइनल और 1994 के बाद सबसे उम्रदराज़ फाइनलिस्ट का तमगा—यह कमाल सिर्फ फिटनेस से नहीं, मानसिक दृढ़ता से आता है। साल की शुरुआत में उन्होंने ऑस्ट्रेलियन ओपन का फाइनल भी खेला था। लंदन में उन्होंने क्वार्टरफाइनल में जेलीना ओस्तापेंको जैसी आक्रामक खिलाड़ी को शांत किया और सेमीफाइनल में जोहाना कॉन्टा के घरेलू जोश को 6-4, 6-2 से थाम दिया। लेकिन फाइनल में, खासकर पहले सेट के अंत से, उनका फोरहैंड नियंत्रण खो बैठा और मैच उनके हाथ से फिसल गया।

टूर्नामेंट की बड़ी कहानियाँ: खुला ड्रॉ, नई चेहरों की दस्तक

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Wimbledon 2017 की शुरुआत सेरेना विलियम्स के बिना हुई। डिफेंडिंग चैंपियन माँ बनने की तैयारी में कोर्ट से दूर थीं, और इसी खाली जगह ने कई कहानियों को जन्म दिया। फिर भी, यह ड्रॉ खुला जरूर था, आसान नहीं। मुगुरुज़ा ने चौथे राउंड में नंबर-वन दावेदार एंजेलिक केर्बर को तीन सेट में पलटवार कर हराया, क्वार्टरफाइनल में स्वेतलाना कुज़नेत्सोवा को सलीके से निपटाया और सेमीफाइनल में मैगदालेना रिबारिकोवा को 6-1, 6-1 से एकतरफा मात दी। इस रफ्तार ने फाइनल में उनका कदम और भारी बना दिया।

ब्रिटेन की उम्मीदों ने भी लंबे अरसे बाद उछाल देखा। जोहाना कॉन्टा 1978 के बाद पहली ब्रिटिश महिला बनीं जो सेमीफाइनल तक पहुँचीं। सेंटर कोर्ट पर उन्होंने सिमोना हालेप के खिलाफ दबाव में बेहतरीन टेनिस खेलकर क्वार्टरफाइनल जीता—वह मैच इस टूर्नामेंट के मोड़ की तरह याद किया जाएगा। वहीं, स्लोवाकिया की रिबारिकोवा की कहानी प्रेरणादायक रही। घुटने की चोट के बाद उनकी रैंकिंग खिसकी थी, लेकिन घास के सीजन में उन्होंने आत्मविश्वास वापस पाया और करियर का पहला ग्रैंड स्लैम सेमीफाइनल खेला।

रैंकिंग की दुनिया में भी हलचल रही। कैरोलीना प्लिस्कोवा दूसरी राउंड में हारकर भी टूर्नामेंट के बाद नंबर-1 बन गईं, क्योंकि एंजेलिक केर्बर और सिमोना हालेप बाद के दौरों में आगे नहीं बढ़ पाईं। यह बताता है कि महिला टूर कितना खुला है—हर हफ्ते, हर सतह पर तस्वीर बदल सकती है।

भविष्य की झलक भी मिल गई। बियांका आंद्रेस्कू और आर्यना सबालेंका ने ग्रैंड स्लैम मेन ड्रॉ में अपना पहला कदम यहीं रखा। उस वक्त दोनों उभरती खिलाड़ी थीं; बाद में आंद्रेस्कू यूएस ओपन चैंपियन बनीं और सबालेंका ने कई ग्रैंड स्लैम जीतकर नंबर-1 का दर्जा पाया। 2017 का विम्बलडन इनके करियर का शुरुआती मील का पत्थर था।

स्पेनिश कैंप में यह जीत सिर्फ ट्रॉफी भर नहीं, आत्मविश्वास की नई लकीर थी। मुगुरुज़ा 2015 और 2016 की सीख को साथ लेकर लौटीं—घास पर कम गलतियाँ, सर्विस पर भरोसा, और अवसर दिखते ही बेखौफ शॉट-मेकिंग। बड़े मंच पर उन्होंने यही किया। रैंकिंग में उन्हें बड़ा फायदा मिला और हार्ड-कोर्ट सीजन के लिए वे सबसे खतरनाक नामों में शामिल हो गईं।

वीनस के लिए भी यह हफ्ता किसी बयान से कम नहीं। 37 की उम्र में दो ग्रैंड स्लैम फाइनल—यह बताता है कि उनकी भूख खत्म नहीं हुई। फिटनेस, मैच मैनेजमेंट और बड़े पलों की समझ उन्हें अब भी टूर पर प्रासंगिक बनाए हुए है। फाइनल दर्द देगा, पर उनका सीजन अभी बाकी था और अनुभव कहता है—वह वापसी करना जानती हैं।

तो कहानी का सार? घास पर साहसी टेनिस ही काम आता है। मुगुरुज़ा ने जोखिम उठाए, उन्हें अंजाम तक पहुँचाया और सेंटर कोर्ट पर हाथ उठाकर दुनिया को बता दिया—यह खिताब इंतजार के लायक था। दूसरी तरफ, वीनस ने साबित किया कि उम्र सिर्फ आँकड़ा है, लेकिन बड़े फाइनल में थोड़ी चूक भी भारी पड़ती है। विम्बलडन 2017 इसी तनी रस्सी पर चले संतुलन का नाम रहा—जहाँ एक खिलाड़ी का साहस सोना बन गया और दूसरी की कोशिशें बस एक कदम पीछे रह गईं।

Rakesh Kundu

Rakesh Kundu

मैं एक समाचार संवाददाता हूं जो दैनिक समाचार के बारे में लिखता है, विशेषकर भारतीय राजनीति, सामाजिक मुद्दे और आर्थिक विकास पर। मेरा मानना है कि सूचना की ताकत लोगों को सशक्त कर सकती है।