शुक्रवार सुबह 8 बजे जब बिहार की विधानसभा चुनाव मतगणना शुरू हुई, तो मतदाताओं की उम्मीदें एक तरफ थीं, और सट्टा बाजार के भाव दूसरी तरफ। लेकिन शाम तक जो नतीजा सामने आया, वो किसी के लिए आश्चर्य नहीं था — NDA ने चुनाव जीत लिया, और नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बन गए। तेजस्वी यादव के महागठबंधन का बड़ा सपना चकनाचूर हो गया — न सिर्फ जीत नहीं, बल्कि उनकी अपनी सीट भी चली गई।
कैश ने बदल दिया वोट का खेल
ये जीत किसकी थी? नीतीश सरकार की वह योजना जिसके बारे में कुछ लोग हंसे — 1.7 करोड़ महिलाओं के खातों में 10,000 रुपये का कैश ट्रांसफर। ये न सिर्फ एक आर्थिक सहायता थी, बल्कि एक राजनीतिक बम जिसका विस्फोट चुनाव के दिन हुआ। महिला मतदान दर 71.78% रही, जबकि पुरुषों में ये दर केवल 62.98% थी। 8.15% का अंतर? ये वो फासला है जिसने पूरे चुनाव का रुख बदल दिया। NDA को 45% से ज्यादा महिला वोट मिले, जबकि महागठबंधन को उसके बराबर भी नहीं। तेजस्वी यादव ने 2,500 रुपये मासिक देने का वादा किया, लेकिन लोगों ने अभी बरकरार नकदी को बेहतर समझा।
राघवपुर: एक यादव का गिरना, एक बीजेपी का उठना
चुनाव का सबसे दिल धड़काने वाला मुकाबला राघवपुर सीट पर था। तेजस्वी यादव के खिलाफ सतीश कुमार बीजेपी के उम्मीदवार थे। मतगणना के दौरान तेजस्वी का नतीजा एक लहर की तरह उठता और गिरता — पहले 36 वोटों से पीछे, फिर 3,000, फिर 5,000... और अंत में 4,829 वोटों से हार। ये नतीजा सिर्फ एक सीट की बात नहीं थी। ये एक संकेत था कि अब यादव परिवार का नियंत्रण राघवपुर पर नहीं, बल्कि बीजेपी के नाम पर है।
धमदाहा: लेसी सिंह की चमकती तलवार
जदू की मंत्री लेसी सिंह ने धमदाहा से राजद के संतोष कुशवाहा को 55,000 वोटों से हराया। ये सिर्फ जीत नहीं, एक संदेश था — जदू के नेतृत्व में महिला नेताओं का बल बढ़ रहा है। नीतीश कुमार के 29 मंत्रियों में से 28 ने जीत दर्ज की। ये कोई यादृच्छिक बात नहीं, बल्कि एक अच्छी तरह तैयार चुनावी मशीन का नतीजा है।
महागठबंधन का अंदरूनी टूटना
महागठबंधन की हार का एक बड़ा कारण था — एकजुटता का अभाव। कांग्रेस फर्जी वोटिंग और वोट चोरी के मुद्दों पर ज्यादा बोल रही थी, जबकि तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के खिलाफ व्यक्तिगत हमले किए। एक साझा अधिकतम कार्यक्रम (Common Minimum Programme) तो नहीं था ही। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 'कट्टा दांव' का डर भी बहुत बड़ा रहा — लोगों को लगा कि अगर तेजस्वी आ गए, तो बिहार की अर्थव्यवस्था फिर से उलट जाएगी।
2020 से 2025: एक राजनीतिक गिरावट
2020 में तेजस्वी यादव ने अपने दम पर 75 सीटें हासिल की थीं। आज वो जीत के लिए 25 सीटों के लिए संघर्ष कर रहे थे। ये कोई छोटी गिरावट नहीं — ये एक राजनीतिक जमीन का बदलाव है। नीतीश कुमार के भाव सट्टा बाजार में 40-45 पैसे तक चल रहे थे, जिसका मतलब था कि बाजार उनकी जीत को पक्का मान चुका था। और अब वो सच बन चुका है।
मोदी का फंड, नीतीश का फायदा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीविका निधि के लिए 105 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। ये फंड तो केंद्र से आया, लेकिन इसका फायदा बिहार के राज्य सरकार को हुआ। नीतीश सरकार ने इसे अपने कैश ट्रांसफर स्कीम के साथ जोड़ दिया — और लोगों ने इसे एक ही चीज मान लिया। ये वो ताकत है जो राज्य सरकार को केंद्रीय योजनाओं को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की क्षमता देती है।
अगला कदम क्या होगा?
अब नीतीश कुमार के सामने एक बड़ा चुनौती है — इस जीत को टिकाऊ कैसे बनाएं? बिहार के युवाओं की बेरोजगारी, शिक्षा की कमी, बुनियादी ढांचे की खामियां — ये सब अभी भी बाकी हैं। लेकिन एक बात साफ है: अब वोट देने वाले महिलाएं राजनीति के मुख्य खिलाड़ी बन चुकी हैं। अगले चुनाव में जो भी योजना उनके लिए नकदी, सुरक्षा और सम्मान लेकर आएगी, वही जीतेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
कैश ट्रांसफर ने वास्तव में चुनाव जीता?
हां, लगभग 1.7 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये की नकदी ने वोटिंग के फैसले में बड़ा असर डाला। महिला मतदान दर 71.78% रही, जो पुरुषों की 62.98% से 8.15% अधिक थी। ये अंतर नीतीश सरकार की जीत का आधार बना।
तेजस्वी यादव की हार का क्या कारण था?
तेजस्वी की हार के कई कारण थे — महागठबंधन में एकजुटता का अभाव, कांग्रेस का अनिश्चित रुख, और नीतीश के कैश स्कीम के बाद लोगों का भरोसा। राघवपुर सीट पर 4,829 वोटों से हारना उनकी राजनीतिक निर्भरता का संकेत था।
NDA में BJP क्यों आगे रही?
BJP ने राज्य के विकास के लिए केंद्रीय योजनाओं को जोर देकर प्रस्तुत किया, जबकि JDU ने स्थानीय समस्याओं के साथ जुड़कर नीतीश के नेतृत्व को बढ़ावा दिया। दोनों पार्टियों के बीच रोल विभाजन स्पष्ट था — BJP ने नेशनल एजेंडा, JDU ने लोकल एजेंडा को बढ़ावा दिया।
महिला मतदान में इतनी बढ़ोतरी क्यों हुई?
कैश ट्रांसफर के साथ-साथ राज्य सरकार ने महिलाओं के लिए स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा के कई कार्यक्रम चलाए। इनके अलावा, चुनावी अभियान में महिला उम्मीदवारों को ज्यादा जगह दिया गया, जिससे उन्हें अपनी पहचान महसूस हुई।
2025 के बाद बिहार में क्या बदलाव उम्मीद किए जा सकते हैं?
अगले वर्षों में नीतीश सरकार युवाओं के लिए रोजगार योजनाएं, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, और बुनियादी ढांचे के विकास पर ज्यादा ध्यान देगी। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती होगी — महिलाओं के वोट को अगले चुनाव में भी कैसे बरकरार रखा जाए।
12 टिप्पणि
Shailendra Thakur
नवंबर 17, 2025 AT 04:24ये चुनाव सिर्फ नीतीश की जीत नहीं, बल्कि महिलाओं की आवाज़ की जीत है। 1.7 करोड़ घरों में जो 10,000 रुपये पहुंचे, वो सिर्फ पैसे नहीं, इज्जत का संकेत थे। अब राजनीति बस नेताओं की बातें नहीं, बल्कि घर की महिला के खाते की बात है।
Sumeet M.
नवंबर 17, 2025 AT 07:11तेजस्वी के बेटे को बार-बार चुनाव लड़ने देना क्या है? ये राजनीति नहीं, रिश्तेदारी की राजनीति है! BJP ने देश की सोच बदल दी - अब लोग वोट नहीं, विकास देख रहे हैं। कैश ट्रांसफर? ये तो बस शुरुआत है। अब बिहार में अंधविश्वास खत्म हो रहा है!
vinoba prinson
नवंबर 17, 2025 AT 17:14महिलाओं की मतदान दर में 8.15% का अंतर? ये आंकड़ा तो आंकड़ा है, लेकिन इसके पीछे का सामाजिक बदलाव तो बड़ा है। जब एक माँ अपने बच्चे के लिए नकदी लेकर घर आती है, तो वो उसे बस खर्च नहीं करती - वो उसे भविष्य का निवेश मानती है। ये चुनाव एक अर्थव्यवस्था का नहीं, एक संस्कृति का बदलाव था।
और जो लोग कहते हैं कि ये सिर्फ नकदी का खेल है, वो शायद खुद अपने घर में एक महिला के निर्णय को कभी सुने नहीं।
नीतीश की सरकार ने जो बनाया, वो एक नीति नहीं, एक नागरिक संबंध था - जहाँ राज्य और नागरिक के बीच का बंधन नकदी से बना, बल्कि विश्वास से।
क्या आपने कभी सोचा कि जब एक महिला अपने खाते में 10,000 रुपये देखती है, तो वो सिर्फ ये सोचती है कि अब बच्चे के लिए नए जूते खरीद सकती है? नहीं, वो सोचती है कि अब मैं भी इस देश की हिस्सा हूँ।
ये चुनाव वोट का नहीं, आत्मसम्मान का था।
और ये बदलाव अब बिहार से बाहर भी फैलेगा - जब एक राज्य में महिलाएं राजनीति की नींव बन जाएं, तो देश का रुख बदल जाता है।
तेजस्वी के पास वादे थे, लेकिन नीतीश के पास विश्वास था।
और विश्वास कभी नकदी से नहीं, लेकिन लगातार काम से बनता है।
अगले चुनाव में जो भी यहां आएगा, उसे याद रखना होगा - महिलाओं का वोट अब कोई लॉटरी नहीं, बल्कि एक निर्णय है।
और निर्णय नहीं, जो आप देते हैं, बल्कि जो आप बनाते हैं।
Ankit Meshram
नवंबर 19, 2025 AT 02:27महिलाओं ने जीत दी। बस।
Shaik Rafi
नवंबर 20, 2025 AT 23:48एक सवाल जो किसी ने नहीं पूछा - अगर ये नकदी अगले चुनाव में नहीं मिले, तो क्या महिलाएं वोट बदल देंगी? ये सवाल नीतीश के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती है। वोट तो देने का नहीं, बरकरार रखने का है।
Muneendra Sharma
नवंबर 22, 2025 AT 02:00राघवपुर का नतीजा तो दिल दहला देने वाला था। तेजस्वी जी के खिलाफ 4,829 वोटों का अंतर? ये एक सीट नहीं, एक दौर का अंत है।
पिछले 20 सालों में राघवपुर यादव घराने का राजधानी था। अब ये जगह बीजेपी के नाम हो गई। ये बदलाव जिस तरह से हुआ - बिना हिंसा, बिना शोर, बस एक नीति और एक विश्वास के साथ - वो असली राजनीति है।
लोगों ने वोट नहीं, भविष्य दिया।
और जब भविष्य बदलता है, तो पुराने नाम भी बदल जाते हैं।
Kisna Patil
नवंबर 23, 2025 AT 13:33लेसी सिंह की जीत ने मुझे रोमांचित कर दिया। एक महिला जो एक गांव से आई, और 55,000 वोटों से जीत गई? ये बिहार की कहानी नहीं, पूरे भारत की कहानी है।
जब महिलाएं राजनीति में आती हैं, तो वो सिर्फ वोट नहीं लातीं - वो एक नई ताकत लाती हैं। वो वोट नहीं, जिम्मेदारी लेती हैं।
नीतीश के 29 मंत्री में से 28 जीते? ये कोई लॉटरी नहीं। ये एक योजना है - जहां नेतृत्व बनाया जाता है, न कि लिया जाता है।
Ashmeet Kaur
नवंबर 24, 2025 AT 06:54मैं एक बिहारी महिला हूँ। मेरे खाते में 10,000 रुपये आए थे। मैंने उसे बच्चे की शिक्षा के लिए लगाया। लेकिन जो बदलाव हुआ, वो पैसे से नहीं, आत्मविश्वास से हुआ।
अब मैं अपने पति के साथ चुनाव के बारे में बात करती हूँ। अब मैं अपने गांव में दूसरी महिलाओं को समझाती हूँ।
ये चुनाव मेरे लिए वोट नहीं, एक शुरुआत थी।
Anand Itagi
नवंबर 24, 2025 AT 16:49महागठबंधन की हार का सबसे बड़ा कारण उनका अपना अंदरूनी टूटना था न कि नीतीश की योजना। कांग्रेस वोट चोरी की बात कर रही थी और तेजस्वी व्यक्तिगत हमले कर रहे थे। कोई साझा दृष्टि नहीं थी।
जब आप एक साथ नहीं चलते तो लोग अकेले वोट देने लगते हैं।
Rajveer Singh
नवंबर 26, 2025 AT 10:53बिहार में जो हुआ वो बस एक चुनाव नहीं था - ये भारत की असली आत्मा का उदय था। नीतीश कुमार ने देश को दिखाया कि जब एक राज्य सच्ची नीति बनाता है, तो केंद्र के पैसे भी उसके नाम हो जाते हैं।
तेजस्वी के लोग कहते हैं कि ये सिर्फ नकदी है - पर वो भूल गए कि जब एक गरीब महिला अपने बच्चे को पढ़ाती है, तो वो नकदी नहीं, भविष्य बन जाती है।
और भविष्य को बेचा नहीं जा सकता।
BJP ने राष्ट्रीय नीति दी, JDU ने उसे जमीन पर उतारा - और लोगों ने दोनों को एक साथ ले लिया।
ये राजनीति नहीं, एक बड़ा राष्ट्रीय संगठन है।
ASHOK BANJARA
नवंबर 27, 2025 AT 15:56इतिहास में जब भी एक सामाजिक बदलाव हुआ, तो उसकी शुरुआत एक छोटी सी योजना से हुई। ये 10,000 रुपये नहीं, बल्कि उसके पीछे का विचार था - कि महिला भी एक निर्णायक है।
ये वो बिंदु है जहां राजनीति और समाज मिलते हैं।
और जब वो मिल जाएं, तो चुनाव बस एक नतीजा हो जाता है।
अब सवाल ये है - क्या अन्य राज्य भी इस दृष्टि को अपनाएंगे? या फिर ये सिर्फ बिहार का एक अलग अनुभव रह जाएगा?
क्या हम अब भी वोट को एक बार का व्यापार समझेंगे? या फिर इसे एक जीवन शैली के रूप में देखेंगे?
ये चुनाव नहीं, एक संक्रमण था।
और जिसने इसे समझा, उसने भारत का भविष्य देख लिया।
Sahil Kapila
नवंबर 27, 2025 AT 16:03अब तो बिहार में नीतीश कुमार का नाम एक चमत्कार बन गया है। लोग अब कहते हैं कि अगर नीतीश नहीं होते तो बिहार अभी तक अंधेरे में होता। ये नहीं कि तेजस्वी ने कुछ नहीं किया - बस उनके वादे अभी तक नहीं पूरे हुए।
और जब आपके वादे अधूरे हों तो लोग नकदी को अपनाते हैं।
लेकिन अगले चुनाव में जब नीतीश के पास नकदी न होगी तो क्या होगा? क्या लोग फिर से उन्हें भूल जाएंगे?
ये सिर्फ एक चुनाव नहीं, एक बड़ा सवाल है।