भारतीय फुटबॉल का भविष्य: असल सुधार क्या चाहिए?

फुटबॉल का शौक भारत में तेजी से बढ़ रहा है, पर प्रदर्शन विश्वस्तर तक नहीं पहुंचा। सवाल यही है — हम अगली पीढ़ी को कैसे बेहतर बना सकते हैं ताकि वे नेशनल और इंटरनेशनल दोनों स्तरों पर टिकी रहें? नीचे सीधे और व्यावहारिक सुझाव हैं जो कोच, क्लब, पालक और प्रशासक तुरंत लागू कर सकते हैं।

बुनियादी ढांचा और कोचिंग

स्टेडियम और ट्रेनिंग ग्राउंड सिर्फ दिखावे के लिए नहीं होने चाहिए। छोटे शहरों में भी अच्छे ग्राउंड, ड्रेनेज और रात की ट्रेनिंग के लिए लाइटिंग जरूरी है। कोचिंग में बेसिक ध्यान तीन चीजों पर रखें — तकनीक (बल, पास, ड्रिबल), फिटनेस (एरोबिक, स्पीड), और मैच समझ (स्थिति निर्णय)। कोचों को आधुनिक प्रशिक्षण विधियाँ सिखाने के लिए स्थानीय लेवल पर ब्रीफ वर्कशॉप आयोजित करें। अंतरराष्ट्रीय कोचों से पार्टनरशिप करके छह महीने के کور्स कराए जा सकते हैं — इससे युवा खिलाड़ी सही दिशा में बढ़ेंगे।

युवा विकास, लीज़न और ग्रासरूट नेटवर्क

युवा अकादमी सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। स्कूल-स्तर पर फुटबॉल प्रोग्राम, जिलास्तर की प्रतियोगिताएं और सलेक्शन कैंप हर महीने आयोजित होने चाहिए। 12–18 उम्र में खिलाड़ी की पहचान और उसका सिस्टमैटिक प्रशिक्षण सबसे ज़रूरी है। क्लबों को यह जिम्मेदारी बांटनी होगी कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में टैलेंट हंट करें। छोटे टूर्नामेंट्स में स्काउट भेजना और विजेताओं को शहर की ट्रेनिंग में शामिल करना आसान और असरदार तरीका है। साथ ही, महिला फुटबॉल पर फोकस करें — ज्यादा टूर्नामेंट और सिचुएशन ट्रेनिंग से हम महिला टीम की गहराई बढ़ा सकते हैं।

लीग सिस्टम को मजबूत करें। ISL और I-League के बीच तालमेल बनाकर न केवल शीर्ष टीमों को बेहतर बनाया जा सकता है, बल्कि प्रमोशन-रीलेगेशन जैसे सिस्टम से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। क्लबों को आर्थिक रूप से टिकाऊ बनाने के लिए स्थानीय बिजनेस और प्रदेश सरकारों को जोड़ें — स्पॉन्सरशिप, टिकटिंग और मर्चेंडाइजिंग से राजस्व बढ़ेगा।

छोटे-छोटे कदम भी बड़ा फर्क डालते हैं: हर क्लब के पास फिटनेस कोच, न्यूट्रिशनिस्ट और मेंटल काउंसलर होना चाहिए। खेल विज्ञान और डेटा एनालिटिक्स को अपनाना अब महंगा विकल्प नहीं रहा — युवा खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस ट्रैक करना आसान बना देगा यह।

आप एक माता-पिता हैं, कोच हैं या फुटबॉल प्रेमी — सबसे पहला काम है समय देना। बच्चों को नियमित मैच एक्सपोज़र दें, तकनीक पर दिन-दोगुना काम कराएँ और हार-जीत दोनों में सीखने का माहौल बनाएं। यही छोटी आदतें भविष्य की बड़ी टीम बनाती हैं।

भारत में टैलेंट है, पर उसे सही दिशा, संसाधन और स्थिरता चाहिए। अगर अकादमी से लेकर लीग तक हर स्तर सुधरेगा, तो भारतीय फुटबॉल सिर्फ घरेलू नहीं—दुनिया में नाम कमाएगा।

16 मई 2024 0 टिप्पणि Rakesh Kundu

सुनील छेत्री का संन्यास: भारतीय फुटबॉल के पोस्टर बॉय का रिटायरमेंट, प्रशंसकों में डर और सवाल

भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान सुनील छेत्री ने खेल से संन्यास लेने की घोषणा की है। यह भारतीय फुटबॉल के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत है। छेत्री के संन्यास ने प्रशंसकों में भय और भारतीय फुटबॉल के भविष्य को लेकर प्रश्न छोड़ दिए हैं।

जारी रखें पढ़ रहे हैं...